रिश्तों का ठूंठ
रिश्तों का ठूंठ
कुछ दिन ही सही ,बच्चों के साथ रहने की उत्सुकता आनंद दायक तो है । बेटा कुछ दिन अपने मम्मी पापा को, अपने पास बुला कर पुत्र होने का फर्ज निभाना चाहता है। पर एक सफल व्यक्ति के पैरंट्स बनने का दिखावा करने की सोच उमंगों को निचोडती रहती है मिस्टर अनिल को । क्या इस उम्र में अभिनय कर पाएंगे मिस्टर अनिल । सुनीता और अनिल बड़े बेचैन रहते हैं आजकल, बेटे के पास जाने की उत्सुकता ,और घर को छोड़कर जाने की बेचैनी बढ़ रही है । सुदूर देश अमेरिका में बसा इकलौता पुत्र, परदेसी ही हो गया । मिस्टर अनिल का एक ही लक्ष्य था, बच्चे को इतना पढ़ाऊंगा ,कि पढ़ लिख कर जब बहुत बड़ा अफसर बनेगा तो फक्र से सबसे कहूंगा, देखो मेरा बेटा अफसर है, अफसर । जिंदगी का एक ही सपना रहा ,मि अनिल का कि बच्चे को सबसे बड़ा अफसर बनाऊं । अपनी जरूरतें तो बस आवश्यकता पड़ने पर ही पूरी होती। पढ़ते समय पत्नी सुनीता को पूरी सतर्कता से रहने की हिदायत रहती, कि मोहित को कोई डिस्टर्ब ना करे। कहीं रिश्तेदारी या जानकारों की समारोह में जाने के नाम पर कोई ना कोई मोहित की परीक्षा या टेस्ट आड़े आ जाता । सुनीता ही औपचारिकता निभाने की औपचारिकता निभाती ।सामाजिक परिवेश के लिए समाज में प्रवेश करना भी कितना जरूरी है ,इस सब को भूल बैठे थे मिस्टर अनिल । एक ही सपने में रंग भरते रहे जिंदगी भर ,बेटे के भविष्य को ही उडान देते रहे मिस्टर अनिल । आगे बढ़ने के लिए विदेश जाने की मोहित की इच्छा देखकर अजीब सी छटपटाहट पहली बार महसूस की मिस्टर अनिल ने ,पर स्वयं ही तैयारी करने में जुट गए मोहित को अमेरिका भेजने के लिए । समय चल क्या रहा था ,भाग रहा था। समय भी अजीब हो चला ,हमेशा आगे चलने की पहचान रखने वाला समय ,अनिल की जिंदगी में नया ढंग ही दिखाने लगा । चुपचाप पलंग पर लेटे लेटे जब छत देखते-देखते ,सोने की कोशिश नाकाम होने लगी, अनिल को रह-रहकर यादें अपनी रस्सी से खींचने लगीं, हर याद की अलग रस्सी ,हर रस्सी की जकड आज मजबूत सी लगने लगी । कितना अरसा हो गया ,अपनी यादों के पिटारे पर पड़ी गर्त छाड़े हुए ,पर यादों ने जरा सा सुराख पाकर,सामने आ करके मुस्कुराने लगीं। बहुत दिनों बाद अचानक निश्चल हंसी मिस्टर अनिल के होठों पर तैरने की कोशिश करने लगी । एक गुदगुदाती सी याद, कॉलेज के दिनों में ले गई ।सुनीता उसके साथ ही तो पढ़ती थी, और सुनीता के पिता उसके गांव में डाक बाबू थे , सुनीता के पिता से अनिल के परिवार के साथ घरेलू संबंध बन गए ,और अनिल और सुनीता की जोड़ी ठीक लगती देख ,दोनों के घरवालों ने उनके विवाह की सहमति देकर ,सभी रीति-रिवाजों के साथ उनका विवाह धूमधाम से किया । अनिल नौकरी की तलाश में शहर आ गए और अच्छी नौकरी पा सुनीता को भी अपने पास बुला लिया। गांव में मां पिताजी दोनों बड़े भाई और भाभीयों के पास रहे ,तो परिवार की जिम्मेदारियों में अपनी कोई भागीदारी कभी महसूस नहीं की ,और अपने को सदैव जिम्मेदारियों से मुक्त पाया । कालेज के मित्र सुबोध को अपने ऑफिस में अचानक देखकर कुछ स्मृतियों के साथ हैरान और खुश भी हो गए मिस्टर अनिल । सुबोध का हंसमुख स्वभाव काम के तमाम बोझ को अपने ऊपर कभी भी हावी न होने देता, हर चेहरे पर मुस्कुराहट उसकी उपस्थिति से अपने आप ही आ जाती। अनिल को अच्छा लगने लगा सुबोध को अपने ऑफिस में देखकर। सुबोध ने अनिल के पास में ही मकान ले लिया और दोनों परिवार अक्सर साथ ही साथ रहते । परिवार के छोटे-छोटे बच्चे कब बडे हो गए पता ही न चला ।बड़े होकर अपने निर्णय स्वयं ही लेने लगे ,समय चक्र चलता जा रहा था। अनिल और सुनीता की रातें यादों के सहारे कट रही थी ,पर दोनों की यादों के पिटारे अलग-अलग रहे । अनिल के बेटे मोहित की पढ़ाई पूरी करते-करते अमेरिका में ही नौकरी लग गई ।दो महीने के लिए मोहित आया मां और पापा के पास, तो सुबोध की बेटी से जान पहचान को रिश्तेदारी में बदलने की सोच ,सगाई जैसी रस्म कर दी गई। अब दोनों परिवार की नजदीकियां और ज्यादा बढ़ गई, छह महीने बाद मोहित, पन्द्रह दिन की छुट्टी लेकर आया और दोनों घरों में जल्दी-जल्दी कुछ शुभचिंतकों के बीच पल्लवी और मोहित की शादी कर दी गई । अमेरिका जाने के लिए पल्लवी का पासपोर्ट और वीजा बीच के छह महीने में मोहित ने पहले ही तैयार करवा लिये। शादी के बाद दोनों परिंदे शाखाओं को छोड़ नीले बितान में उड़ान भरने के लिए निकल पड़े ।ऐसी उड़ान जो लक्ष्य को भी लक्ष्य देने लगे । जिंदगी का नया अध्याय कुछ रीतेपन से शुरू करा मिस्टर अनिल ने ।बच्चों को लेकर जो सपने देखे दोनों के माता-पिता ने उस में माता-पिता तो दिखाई ही न दिए । बेटे को सफलता के शिखर का रास्ता दिखाने वाले या तैयार करने वाले मिस्टर अनिल ने नजदीकी रिश्तों की नजदीकी को अवरोध माना था । आज गहरी खाई के एक छोर पर मिस्टर अनिल ठूंठ की तरह आकर्षणहीन हो खड़े हैं ,और दूसरी छोर पर हाथ से स्वयं फिसलाए सूखी रेत की तरह सारे रिश्ते आपसी सौहार्द से प्रेम मगन होकर साथ साथ खड़े हैं । और अब अनिल अचानक चिकनी सीधी दीवार पर चढ़कर उन सब को पाना चाहते हैं अब क्यों मिस्टर अनिल को अपने द्वारा रोपा गया अकेलापन रास नहीं आ रहा ।